भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीवन-सार / दीप्ति गुप्ता
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:20, 19 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीप्ति गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
उजला दिन अँधियारी रात
ये दोनों जीवन के साथ
उत्थान,पतन,अपमान-मान
रंगीन जश्न, सूना श्मशान
ढलता सूरज, उगता चाँद
कहता हमसे,यह लो मान
सुख-दुख जीवन के दो पहलू
एक आता, दूजा छुप जाता
इस चक्र में बँधा संसार
यह नियम,संसृति-आधार
पतझड़,मधुमास,ज्येष्ठ,आषाढ़
सर्दी में कोहरे की चादर
गर्मी में तारों की रात
घूम-घूम कर आती जाती
जीवन-मृत्यु, जीत और हार
तटस्थ भाव से जीना रहना
यही है, इस जीवन का सार!