भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सपने / दीप्ति गुप्ता

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:33, 19 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीप्ति गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अजनबी चेहरों में, अपनों को ढूँढ़ते हो
सहरा में क्यों गुलिस्तां खोजते हो!

बंजर जमीन में, फूलों को रोपते हो
प्यार बेवफा से, वफा की सोचते हो!

आँखों में कोहरा, क्यूँ सितारों को खोजते हो
दोस्ती बदकिस्मती से, किस्मत को कोसते हो!

खिजाओं को न्योत के, बहारों की सोचते हो
संगदिल जमाने के संग खुशियों की सोचते हो!