भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आसानियाँ और मुश्किलें / मनमोहन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:44, 19 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनमोहन |अनुवादक= |संग्रह=जिल्लत क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
न कहना आसान है
और कहना मुश्किल
लेकिन कहते चले जाना
न कहने जैसा है
और काफ़ी आसान है
इसी तरह न रहना आसान है
और रहना मुश्किल
लेकिन रहते चले जाना
न रहने जैसा है
और काफ़ी आसान है
चाहें तो सहने के बारे में भी
ऐसा ही कुछ कहा जा सकता है