भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फगुआ / चन्द्रमणि
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:07, 21 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रमणि |संग्रह=रहिजो हमरे गाम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
नाधिन तिनक धिन नाधिन तिनक धिन
बाजि रहल मृदंग रे
बिनु पिउनहि फगुआमे मनुआ नाचै
मोर मत्तंग रे।।
नवरंगक परिधान पहिरिकऽ
धरती गगनकें नौंते
खेत-खेत मुस्कान सुमनकें
गुज्जिंत अलिकुल सौंसे
छमकि गुजरिया चलै डगरिया चुनरी रंग बिरंग रे।।
जोहि रहल जे बाट पियारी
प्रियतम के मासो सँ
प्रेम-सिंधुमे डूबि रहल अछि
प्यासल जे बरिसो सँ
मर्यादा छथि बिसरल सबटा कृष्ण राधिका संग रे।।
पिचकारी दै प्रेम फुहारा
सबतरि लाले लाल
रगड़ि गुलाल लालकय देलनि
भइया भउजीक गाल
उमरि गेलै आवारा यौवन सबठाँ एकहि रंग रे।।
घर-घर मे उत्सव केर बेला
गमकि बेलै पकवान
जन-जनमे अछि प्रेम समायल
कण-कण में भगवान
रहल केओ ने राजा रानी आइ केओ ने रंक रे।।