भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रस्तावना / अभिज्ञात

Kavita Kosh से
Abhigyat (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:01, 22 मार्च 2015 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


बीसवीं सदी का आख़िरी दशक राजनैतिक, सामाजिक व आर्थिक क्षेत्रों में कई परिर्तनों का साक्षी रहा है। कहना न होगा कि रचनाकारों के लिए यह व्यापक चुनौतियों का दौर रहा। अपने विश्वासों को गहराई में पैठकर जांचने-परखने की ज़रूरत थी और आवश्यकतानुसार उसमें रद्दोबदल की पर्याप्त गुंजाइशें रहीं। अभिज्ञात उन लकीर पीटते रहने वाले रचनाकारों में से नहीं हैं, जो तमाम परिवर्तनों से आंखें मूंद कर केवल वह लिखें जो अभ्यासजन्य हो। नयी लड़ाइयों से पुराने ही वैचारिक हथियारों से भिड़ने का प्रमाद उनका नहीं था।

अभिज्ञात ने लगातार यह कोशिश की कि जो कुछ देश-दुनिया में घट रहा है उसे देखें, परखें और अपनी उन टककी प्रतिक्रियाओं को अपनी रचनाओं में दर्ज होने दें ताकि लेखक होने की ज़िम्मेदारी का निर्वाह हो जाये। बीसवी सदी के अंतिम दशक की रचनाशीलता का गंभीर और तटस्थ मूल्यांकन अभी बाकी है। इस दशक में वैश्विक स्तर पर सोवियत संघ के विघटन के कारण दुनिया का एक ध्रवीय होना, उसके कुछ अरसा पहले चीन के थ्येनानमन चौक पर 4 जून 1989 को स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए छात्रों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान संहार और 1991 में भारत में आर्थिक उदारीकरण व आर्थिक सुधार की नीति का लागू होना, 6 दिसम्बर 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस इसके मुख्य बिन्दु हैं, जिसने इस कालखण्ड की रचनाधर्मिता को नयी चुनौतियां दीं, जिसके आलोक में तमाम चीज़ों को नये सिरे से देखने की आवश्यकता थी। नब्बे के दशक की घटनाओं को उसके सही परिप्रेक्ष्य में समझने में अभिज्ञात की ये कविताएं मददगार होंगी। 1990 में अभिज्ञात का पहला कविता संग्रह आया था, तब से वे अपने लेखन से सार्थक हस्तक्षेप करते रहे हैं। बीसवीं सदी की आख़िरी दहाई में संकलित उनकी सभी कविताएं नवे दशक में प्रकाशित उनके विभिन्न कविता संग्रहों से एक चयन है, जो समय को समझने की कवि की मेधा व उसकी समय सापेक्षता और जन से जुड़ी प्रतिबद्धता का भी परिचायक है।