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मातृ-तर्पण / शम्भुनाथ मिश्र

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हे माय अश्रु पूरित प्रणाम
अपने कयलहुँ परलोक गमन
असहज लागल ई धरा धाम
हे माय अश्रु पूरित प्रणाम

अछि मन पड़ैत ओ समय अपन कोरामे लय झुलबैत छलहुँ
अछि मन पड़ैत ओ राति जखन प्रतिदिन खिस्सा सुनबैत छलहुँ

ममताक सुखद आँचर समेटि
चिर जीवनकेँ देलहुँ विराम

रहि गेल कते अनकहल कथ्य जकरा नहि कहियो सूनि सकब
हृदयक पीड़ा ओ मनक टीस से आब न कहियो बूझि सकब

कष्टहुमे रहि हँसिते रहलहुँ
नहि बिसराइत अछि छवि ललाम

एखनहुँ गुंजित लगइछ वाणी जे-सुनि-सुनि तृप्त रहैत छलहुँ
रुचिगर तीमन आ तरकारी खयबामे लिप्त रहैत छलहुँ

धरि आइ अभावक भाव बूझि
चिन्तित मन सुमिरय राम-राम

आँखिक परोक्ष रहितहुँ एखनो आशीष पाबि हम रही धन्य
साक्षात स्वरूपक दर्शनसँ एखनहुँ हम लगइत छी अनन्य

ऐहब रहितहिँ तजि नश्वर तन
अपनाकेँ कयलहुँ पूर्ण काम।

प्राणक उत्सर्जन बेलामे मुख सम्मुख कयने ठाढ़ रही
निज वर्त्तमानसँ विमुख होइत जनु दिव्य रूप साकार रही
जीवन लगाय सत्ये परन्तु
अछि सत्य मात्र ईश्वरक नाम

इच्छा होइत अछि अबितहुँ पुनि करितहुँ दुलार पुनि गाल छूबि
बुझितहुँ अपनाकेँ धन्य-धन्य स्नेहक सागरमे डूबि-डूबि

एहि मर्त्य भुवनकेँ त्यागि अहाँ
नहि जानि बसल छी कोन गाम

मातृत्वक सुख नहि भेटि सकल से जा मसानमे भान भेल
एकरासँ नहि छै पैघ तीर्थ मुख-अग्निकालमे ज्ञान भेल

आराध्य हमर हे माय नित्य
कर जोड़ि करी शत-शत प्रणाम