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पिताक सन्देश: पुत्र हेतु / शम्भुनाथ मिश्र

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फरकनबाबू बड़ पैघ लोक,
संघर्षशील, बड़ उपकारी
शुरुएसँ रहलनि उचित दृष्टि
अपना समाज आ राष्ट्र लेल
बच्चेसँ अँखिगर लोक, देखि
गामक सब बूढ़-बुढ़ानुससँ
आशीष पबैत छलाह सदा।
से फरकनबाबू गामक पंचायतकेर मुखियासँ क्रमशः
बढ़इत-बढ़इत भारत सरकारक
मंत्रीपद शोभित कयलनि,
अपना क्षेत्रक, गामक, टोलक
परिवार सभक चिन्ता रखने,
जहिया कहियो फरकनबाबू,
अबइत छलाह घुरि गाम,
जुटै छल लोक सकल समुदाय केर,
सब एकहि स्वरमे कहै छलनि जे,
नेता हो तँ हिनके सन
जे राखय सबपर दृष्टि सतत एकहि समान

फरकनकेँ छनि छओ बेटी,
बेटा एकेटा।
छै नाम सुमन
आ मन सदिखन कयने रहैछ सबहक उन्मन,
उन्मत्त परम, उच्छृंखल, कपटी,
आतंकक पर्याय बनल अछि, अपन समाजक लेल सदा,
छल लोक बजैत पड़ोसक जे
जकरा छै एहन पूत ताहिसँ थीक निपुत्रे नीक,
कलंकी पुत्रक काजे कोन?
कतहु छल ईहो चर्च चलैत,
फलाँ बाबू अपने बड़ नीक
मुदा छनि बागड़ बेटा भेल,
बुड़ा देलकनि धरि कुल केर नाम,
एहन जँ बेटा हमर रहैत
दितहुँ परिकठपर मूड़ी राखि काटि खण्डी-खण्डी
चलय महिलो मण्डलमे चर्च
फलाँकेर बेटा भेलनि मोचण्ड
लगै छै मूँह केहन चण्डाल जकाँ
अचियामे झरकि तुरन्ते सरिपहुँ आयल हो।

मुदा बजला परबाबा बूढ़,
बरख होयतनि नब्बेक करीब
न देलथिन अपने कहियो ध्यान,
लिखल छनि दुर्गति अपन कपार
जकर छै जतेक उचित अधिकार,
रहै तकरापर ततबे दृष्टि
पिताकेर लेल यैह सन्देश,
सभ्य आदर्श समाजक लेल।