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सुन्दर संसार / शम्भुनाथ मिश्र

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देशकेर नौका पड़ल मझधारमे अछि
सफल कर्मठ सजग खेबनिहार चाही

आश जकरा पर कयल, कयलक निराशे
ताकि रहलहुँ शून्यमे सब छी हताशे
भोगवादक पंकमे भसिया रहल छी
धर्म-कर्मक हेतु दृढ़ आधार चाही

धर्म समभावक अभावेमे पड़ल छी
दिग्भ्रमित भय बाट सब टोहिया रहल छी
धर्म थिक निरपेक्ष भ्रम पसरल चतुर्दिक
एहि भ्रमसँ देशकेँ निस्तार चाही

स्वार्थ लिप्सा लोभ जनु आकाश ठेकल
त्याग मर्यादा जुमा कऽ दूर फेकल
आसुरी-संस्कार पसरल जा रहल अछि
नाश करबा लय शिवक अवतार चाही

मानवे दानव बनल हुहुआ रहल अछि
स्वार्थहिक ज्वाला सतत धुधुआ रहल अछि
हो समर्पण देश हितमे हे विधाता
स्वच्छ सुन्दर मानवक संसार चाही