भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक जलती-बुझती ख़ुशी / वीरेन डंगवाल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:54, 12 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन डंगवाल |संग्रह=दुष्चक्र में सृष्टा / वीरेन डंगव...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज



जैसे तारों की टिमक

जैसे ब्याह वाला घर

जैसे फूट पड़ते फ़व्वारे का उल्लास

जैसे एक निराशा घनघोर

मैं आजिज़ आ चुका हूँ इससे
मुझे यह और चाहिए ।