भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नाव-नदी संयोग भइल बा / सूर्यदेव पाठक 'पराग'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:57, 30 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग' |संग्रह= }} {{KKCatBho...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नाव-नदी संयोग भइल बा
कइसन-कइसन लोग भइल बा

जबले पड़ल जरूरत उनका
भर मतलब उपयोग भइल बा

जब मिलला के चाह रहल तब
टारे के उतजोग भइल बा

कटके भाग बाड़े, जइसे
कवनो छुतिहा रोग भइल बा

मतलब के बाजार गरम बा
लक्ष्य सभत्तर भोग भइल बा