भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आली मनमोहन के मारै / ईसुरी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:17, 1 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ईसुरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} {{KKCatBu...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आली मनमोहन के मारै।
जमना गैल बिसारें।
जब देखो तब खड़े कुंज में।
गहें कदम की डारैं।
जो कोऊ भूल जात है रास्ता
बरबस आन बिठारैं।
जादौं नई हँसी काऊसों।
जा नइ रीत हमारैं।
ईसुर कौन चाल अब चलिये,
जे तो पूरौ पारें।