भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मद अब देत करेजे जारें / ईसुरी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:30, 1 अप्रैल 2015 का अवतरण
बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
मद अब देत करेजे जारें
आई बसन्त बहारें।
सीतल पवन लगत है ऐसी,
मानो अगन की झारें।
बोल-कोकिला लगें तीर से
लेवें प्राण निकारे।
आमन-मौर झोंर के ऊपर
भोंर करत गुन्जारे।
ईसुर पाती देव पीतम खाँ
घर खों बेग पधारें।