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बखरी रैयत है भारे की / ईसुरी
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बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
बखरी रैयत है भारे की,
दई पिया प्यारे की।
कच्ची भीत उठी माटी की,
छाई फूस चारे की।
वे बन्देज बड़ी बे बाड़ा,
तई पै दस व्दारे की।
किबार-किवरियाँ एकऊ नइयाँ,
बिना कुची तारे की।
‘ईसुर’ चाँय निवारों जिदना,
हमें कौंन बारे की।