भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बखरी रैयत है भारे की / ईसुरी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:44, 1 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=बुन्देली |रचनाकार=ईसुरी |संग्रह= }} {{KKC...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बखरी रैयत है भारे की,
दई पिया प्यारे की।
कच्ची भीत उठी माटी की,
छाई फूस चारे की।
वे बन्देज बड़ी बे बाड़ा,
तई पै दस व्दारे की।
किबार-किवरियाँ एकऊ नइयाँ,
बिना कुची तारे की।
‘ईसुर’ चाँय निवारों जिदना,
हमें कौंन बारे की।