भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हौनी दो पग चलत अँगरैं / ईसुरी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:00, 1 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=बुन्देली |रचनाकार=ईसुरी |संग्रह= }} {{KKC...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
हौनी दो पग चलत अँगरैं,
सब तन चलत पिछारैं।
जैसुइ जान घरों आँगे खाँ,
मार देह का धारें।
करमन वचन करत है ओई,
होनी जौन विचारे
सुर मुन नर आकुल है, ‘ईसुर’,
ई होनी के मारे।