भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तूतनख़ामेन के लिए-22 / सुधीर सक्सेना

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:54, 14 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर सक्सेना |संग्रह=काल को भी नहीं पता / सुधीर सक्सेन...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख़ुशनसीब है तूतन

अगर एक भी रात

उसे चूमा चांदनी ने

और उसके महल के प्रांगण में

कुमकुमे बिखेर दिए चांद ने


ख़ुशनसीब है तूतन

अगर महल की प्राचीर पर अलस्सुबह

उतर आए सातों घोड़े


ख़ुशनसीब है तूतन

अगर बुर्ज पर एक भी बार

तूतन की नज़रों के सामने

चमकी चमकीली कटार

अंधकार में


ख़ुशनसीब है तूतन

अगर नील से उठी हवा ने

बिखेर दिया उसका अंगराग


बहुत ख़ुशनसीब है तूतन

अगर कभी खुले आसमान तले किसी गाछ की तरह

भीगी तूतन की नंगी देह


बहुत-बहुत ख़ुशनसीब है तूतन

अगर घुटने के बल गिरा चट्टान पर

दौड़ते घोड़े से तूतन

और फिर ऎड़ लगा दी

घोड़े पर सवार हो तूतन ने


अगर इस पर भी

चैन नहीं है तूतन को

तो बहुत-बहुत ज़्यादा बदनसीब है

सच की ओर पीठ किए

तूतन ।