भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अच्छे अच्छों की जान लेता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:19, 18 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र |संग्रह=ग़ज़ल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अच्छे अच्छों की जान लेता है।
इश्क जब इम्तेहान लेता है।
बात सबकी जो मान लेता है।
छोड़ सबकुछ मसान लेता है।
वही जीता है इस नगर में जो,
बेचके घर दुकान लेता है।
फ़न वो देता है जिसको भी सच्चा,
पहले उसका गुमान लेता है।
ये निशानी है खोखलेपन की,
ख़ुद को ख़ुद ही बखान लेता है।
जब भी लगता है रोग पैसों का,
सबसे पहले थकान लेता है।