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अच्छे अच्छों की जान लेता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

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अच्छे अच्छों की जान लेता है।
इश्क जब इम्तेहान लेता है।

बात सबकी जो मान लेता है।
छोड़ सबकुछ मसान लेता है।

वही जीता है इस नगर में जो,
बेचके घर दुकान लेता है।

फ़न वो देता है जिसको भी सच्चा,
पहले उसका गुमान लेता है।

ये निशानी है खोखलेपन की,
ख़ुद को ख़ुद ही बखान लेता है।

जब भी लगता है रोग पैसों का,
सबसे पहले थकान लेता है।