भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खड़े ने खप्पर धारणी / मालवी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:32, 29 अप्रैल 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

खड़े ने खप्पर धारणी
देवी जगदम्बा
थारे मदरो प्यालो हाथ
सदा मतवाली ओ
थारा पावां ने बिछिया सोवता वो
देवी जगदम्बा
थारी अनबट से लागी रयो बाद