भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वंदे मातरम् / अज्ञात रचनाकार
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:08, 1 मई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञात रचनाकार |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
रचनाकाल: 1930
छीन सकती है नहीं सरकार वंदे मातरम्,
हम ग़रीबों के गले का हार वंदे मातरम्।
सरचढ़ों के सर में चक्कर उस समय आता ज़रूर,
कान में पहुंची जहां झनकार वंदे मातरम्।
जेल में चक्की घसीटे, भूख से हो मर रहा,
उस समय भी बक रहा बेज़ार वंदे मातरम्।
मौत के मुंह में खड़ा है, कह रहा जल्लाद से,
भोंक दे सीने में वह तलवार, वंदे मातरम्।
डाक्टरों ने नब्ज़ देखी, सर हिलाकर कह दिया,
हो गया इसको तो यह आज़ार वंदे मातरम्।
ईद, होली, दशहरा, शबरात से भी सौ गुना,
है हमारा लाड़ला त्योहार वंदे मातरम्।
ज़ालिमों का जुल्म भी काफूर-सा उड़ जाएगा,
फैसला होगा सरे दरबार वंदे मातरम्।