भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सरावूं ’क बिसरावूं / निशान्त
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:12, 4 मई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशान्त |संग्रह=धंवर पछै सूरज / नि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सत्तर-साला
डोकरो-डोकरी
रैंवता राजी-खुसी
चोखै-भलै पक्कै
मकान मांय
पण आं दिनां
बै लागर्या है
बीं नै बधावण
संगमरमर जड़ावण
ईं उन्हाळै री लाय में
बै भौत खपै
सोचूं-
बां री इण हिम्मत नै
सरावूं ’क बिसरावूं ?