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नादान प्रेम / संजय शेफर्ड
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नादान प्रेम
बस प्रेम करता है
और जाने अनजाने में
गलती कर ही जाता है
जवान प्रेम
प्रेम नहीं करता
बार- बार गलती करने
बार- बार सुलझाने की परिभाषा है
बुद्धजीवी प्रेम
सिर्फ कविताएं लिखता है
और अस्सी की उम्र में भी
खुदको ज़हीन और जवान बताता है
पर प्रेम तो
इन सबका मिलाजुला समीकरण है
बचपन, जवानी, पुढापे की
मिली जुली शैली, मिली जुली भाषा है
इसीलिए प्रेम कविताएं
कभी पूरी नहीं होती
और प्रेम अक्सर
आधा- अधूरा रह जाता है।