भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुकरियाँ / भारतेंदु हरिश्चंद्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:47, 9 मई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सीटी देकर पास बुलावै।
रुपया ले तो निकट बिठावै।।
लै भागै मोहि खेलहिं खेल।
क्यों सखि सज्जन, नहिं सखि रेल।।
सतएँ-अठएँ मा घर आवै।
तरह-तरह की बात सुनावै।।
घर बैठा ही जोड़ै तार।
क्यों सखि सज्जन, नहीं अखबार।।