भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भोग / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:30, 14 मई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेन्द्र झा ‘सुमन’ |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मिथिलामे ‘निमि’ नामक राजा छला विनित मतिमान
सचिव संग किछु गप करइत देखल नभ उपर वितान
एक चिल्होड़ि लोल लय मांसक लोथ, उड़ल आकाश
झपटि-लपटि चहु दिससँ लोभेँ उड़ल चड़इ कत रास
मारि लोल लोहू लोहान कय देलक ओकरा हंत!
फेकि देलक मांसक टुकड़ा, निज प्राण बचौलक अन्त
पुनि दोसर टेकल, तकरहु पर टुटल विहंग जतेक
ओहो छोड़ौलक जान जखन निर्मोह मांस देल फेक
निमि प्रत्यक्ष देखाय कहल एकसर जे भोगथि भोग
बिनु बँटने हो तनिक एहन गति मिलि-जुलि भोग न सोग