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वृन्दावन / कृष्णावतरण / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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वृन्दावन नन्दन कानन जनु सुख-आनन्दक धाम
दिव्य देव गोकुल ग्रामक वासीक बास अभिराम
कालिन्दी कलकल बहइत मन्दाकिनीक शुचि धार
तरु कदम्ब मन्दार महीरुह छाया सघन उदार
कामधेनु सन गोधन; संवर्धन हित गोचर भूमि
शुचि शाद्वल रुचिमत चरइछ पशु दुधगरि सगरहु घूमि
गोवर्धन गिरि निर्झर झरइत, हरित-भरित रुचिदाय
वन-वनस्पतिक सम्पत्तिक प्रकृतिक सुषमाक निकाय
मुखिया नन्द सहित उपनन्दहु ग्राम-घोष जत लोक
वन-परिसर रहि पुर-ग्रामक सुख पवइछ, रोक न टोक
जनी जाति जत प्रमुदितचित अछि गृहप्रबन्ध हित लभ्य
रंधन-इंधन शाक-व्यंजनहु सस्त-प्रशस्त सुलभ्य
जल भरइत शुचि कलश घाट, नहि कतहु बाट बटमारि
नहि नेनाक खेल हित जगहक कमी कतहु चितहारि
ऋतु वसन्त फुलहर भरि दै अछि सुरभित फूल फुलाय
कोकिल कलकूजनक मधुर संगीत निरंत मुनाय
ग्रीष्म मधुर फल परसि करय हर्षित रसना रुचिदाय
वर्षाऋतु घन सघन बजाबय बाजा सूर मिलाय
सतरंगा परिधान सजाय मयूरहु दैछ नचाय
कमल हस्त लय हंसक पद धुनि शरद स्वच्छ शुचि धाय
चान किरनसँ दैछ चुनैट कुटीर सहज सहकारि
कुमुद कौमुदी मुदित महोत्सव रस-रासक सहचारि
हेमंतहु धनवंत नवान्न जुमबइछ दधि-चिपटान्न
शिशिर शीत अति प्रीत जुटबइछ इंधन अनल तपान
अन-धन लक्ष्मी भरल खेत-खरिहान फूल-फल-मूल
गोवर्धन गिरि शोभावर्धन धातु रत्न मणि तूल
बाड़ी-झाड़ी तर-तरकारी हित जत चहिअ, अलेल
जगह अगहसँ विगह पड़ल परती-पराँत कत भेल