धेनुक-वध / कृष्णावतरण / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
एक दिवस श्रीराम-कृष्णसँ कहल सुबल-दामा दुहु मीत
वृन्दावनक छोरमे तालक वन अछि अतिघन फल परिवीत
नीर भरल अति तरल जकर कोआ-तरकुन लागय बड़ मीठ
चलिअ तोड़ि कय चखिअ ढीठ भय ओतय न ककरहु पड़इछ दीठ
सब हो-हो कय उठल, चलिअ झट आइ ओतहि होयत वनभोज
घुमब-फिरब तालक नमछड़ गाछहुपर चढ़ब, करत के खोज
चलि देलनि झट, अटपट बजइत, लटपट करइत बाल गिरोह
ढेपचेप कत फेकि तालफल तोड़य लगला सबहु निछोह
कतहु धपाय नुकायल छल क्यौ असुर नाम धेनुक खर-रूप
देल चलाय लथाड़, चाहलक चापय वबकेँ यम अनुरूप
भीत-भीत भय छहोछीत बालक-दल चहुदिस गेल पड़ाय
हाहाकार मचल छन भरिमे, रेकय लागल असुर ठठाय
किन्तु बली, बलराम-श्याम छथि अड़ल, असुर बढ़ि चलल रिसाय
दौड़ि दाउ पाछहिसँ टाङ डाङ सन पकड़ि-जकड़ि जुगताय
फेकल ताड़ उपर, रेकय लागल खर मरइत बेर अलेल
गधा रूप छुटि गेल, असुर निज रूप प्रगट अंतिम छन भेल