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षड्यन्त्र / कृष्णावतरण / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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कंसक कपट जाल सब टूटल किंकर्तव्यमूढ अछि भेल
जत चर निश्चर गेल पठाओल एकहु फिरल न, मारल गेल
सोचि रहल अछि, गगन-वचन किछु सत्य बुझाइछ, व्रजमंडल
नन्दक नन्दन बनि क्यौ आयल हमर काल बनि देव प्रबल
किन्तु देवकीकेर अष्टम गर्भक ई बात न मिलइछ एक
बालक नहि बालिका जनमले, रहस्येक ई विषय विवेक
तावत् नारद घुमइत-फिरइत देवलोकसँ उतरि समक्ष
हिनकहिसँ गुत्थी सोझरायत जनिका भूत-भव्य प्रत्यक्ष
कयल प्रणाम, कहल स्वागत हो, अपनेकेँ त्रैलोक्यक ज्ञान
कृपया हमर मनक संशयकेर गाँठ खोलि दी, मुने! महान
कहलनि मथुरापति! सुनि लेबे नहि रहस्य ई प्रकट स्वयम्
वासुदेव-देवकी पुत्र छथि नन्दनन्दनहु कृष्ण अयम्
दैवी मायासँ अहाँक छलवा हित कपट यवनिकापात
उग्रसेन-देवक वसुदेव-देवकिहुकेँ अछि सब किछु ज्ञात
अष्टम गर्भ-अर्भकहि निर्गत मथुरासँ गोकुल पहुँचाय
नन्द-यशोदा पोषित-पालित बुझिअ वैह छथि अहँक बलाय
(योजना-रेखाक दुइ बिन्दु: नारद ओ कंसक चिन्तन)
एतबा कहि चलि देलनि लगले नारद मुनि वीणा बजबैत
आब अधिक दिन नहि उत्पाती रहय जगत-जनकेँ तपबैत
मथुरा थुरा गेल अन्यायेँ, गोकुल आकुल सहजहिँ भेल
व्रज रजमे मिलि गेल, पड़ल वृन्दावन बीचहु द्वन्द्व झमेल
कंस ध्वंसमे लागल कपटी कालनेमिहिक थिक अवतार
आब वासुदेवक हाथेँ हो अविलंबहि लंबित संहार
पिता उग्रसेनक सिंहासन छीनि बनल जे स्वयं नरेश
भगिनी देवकीक संगहि वसुदेवहुकेँ बंदी परिवेश
जते दयादबाद परिवार कुटुम्ब सबहुकेँ देलक बारि
केवल क्रूर कुटिल अन्यायी दलकेँ राखल संग हकारि
मचबय शत उत्पात लोक बिच शोक-शकु बनि पीड़ा दैछ
शिशु निपात करबाय प्रजा-संततिक भविष्यहु बिखड़ा दैछ
जे अछि बली छली संबंधी जरासिंधु शिशुपाल नृपाल
तकरहु आब हकारि रहल अछि कालयवनहुक संग कराल
तेँ पहिनहि हो काल-कवल तकरहि हित लाधल अछि अभियोग
चटपट करओ उपाय अपायक हितहि अहित ई कस प्रयोग
करइत ई संधान महामति देवर्षिक प्रस्थान ओम्हर
कंपित उर कंसहु ध्वंसक हित रचइछ किछु समधान एम्हर
छली रूपमाया-पटु जे छल पहिनहि से संहारल गेल
शेष आप्त जे षड्यंत्री मंत्री से सबहु हकारल गेल