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चन्द्र-चन्द्रिका रसोदय / कृष्णावतरण / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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गत वर्षा ऋतु भिजल-तितल, पंकिल जल मलिने
शरद स्वच्छ परतच्छ कतहु घन उज्ज्वल गगने
पुरिबा-पछवा झटक-झाँट नहि आँट करय मन
ठनका ठनक न, बादर दादुर काँट गुड़य स्वन
मंद पवन बहइछ वन-उपवन गमगम करइछ
कास-हास चहुँ दिस विकास कमलक मन हरइछ
हंसक धुनि पर फुदुकि खजनहु नाचि रहल अछि
शीत-ताप संतुलित समय ऋतु जाँचि रहल अछि
रहइछ स्वर्णक कण वितीर्ण करइत रवि दिन भरि
रजत-किरण करइछ विकीर्ण भरि राति चान धरि
सिङरहार झहराय प्रवाल - हीरकक भूषण
धनि-धनि शरदक दानक महिमा अछि निर्दूषण
सद्यःस्नाता प्रकृति नवांबर पहिरि रहल अछि
शस्यश्यामला आङी अंगहि लहरि रहल अछि
हीरा-मूङाहार पहिरि सेफाली झुलइछ
तीरा टिकुली रंग विरगक साटि रहल अछि
शीत-विन्दुमे स्नात प्रभातक मुख पर लाली
कनकातप गौरांग दिवा वपु शोभाशाली
संध्या सीमन्तिनी सजय सिंदूरी रंजन
केश-वेशिनी निशा-सुन्दरिक वेणी-बंधन
प्रकृति-विकृति तजि संस्कृति अविकृत जगती जगबय
पंक रहित पथ जीवन-रथ सहजहिँ अछि गतिमय
नीलांबर तारकित ओढ़ि श्यामा प्रिय-दर्शिनी
चन्द्रमुखी अछि सम्मुखीन रजनी रसवर्धिनि
चान गगनमे चमकि चंद्रिका संग रंग शुचि
मना रहल छथि जगा रहल छथि जनमन रस रुचि
गगन-पत्र पर सुलिखित नखतक कविता कलना
कवयित्री प्रकृतिक बाँचय जग-दृग रस रचना
शरद शस्यमय समयक उल्लासी गृहस्थ - जन
घर - आङनमे रस विलासिनी मगन रमणि - गन
तखनहि कतहु कानमे अमृतक जनु हो वर्षण
वंशी धुनि सुनि पड़ल राग-अनुराग प्रहर्षण