भिक्षा-पात्र / पयस्विनी / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
ई न कोनो गग्ध-उदर कर मे अछि रिक्त
ई न कोनो दक्षिणाक मन्त्रे अभिषिक्त
ई न कोनो कामनाक संचय अतिरिक्त
तिक्त मुखेँ जकरा प्रति भृकुटि तानि लेब
दान-दक्षिणा प्रयुक्त सुकृति मानि लेब।।
ई न कवच-कुण्डल केर छली वज्रपाणि
बलिक बन्धनो न लेल वामनी प्रमाणि
ई न शिविक जाँच ले’ कपोत-बाज बानि
जकरा दिस शंकाकुल दृष्टि तानि लेब
राजनीति रीति कोनो तुष्टि मानि लेब।।
भूमि-हीन भूमि - पुत्र कोना सहल जाय?
धनी धन्य कोना जखन भूख बढ़ल जाय?
श्रमेँ मूल, पत्र-फूल सम्पदा सहाय
कोना तखन श्रमिक श्रमण श्रद्धा फल लेब
अपन भूमि रतन यदि न भाजन भरि देब।।
‘कस्य स्विद्धन’ सदा सुनी प्रणाम वेद
‘सवै गोपाल-भूमि’ एतय घोषणा अभेद
‘न दुःखभागि क्यौ कदापि’ तोषणा अखेद
दुर्ग तरओ, सर्व सुखी, गर्व तकर लेब
मानवीय स्वर्ग नवे याचना तदेव।।
व्यक्ति सँ समाज, तेँ समाज हेतु व्यक्ति
समाज शक्ति व्यक्ति, तेँ न व्यक्ति सँ विरक्ति
एक दोसराक पूरके निके प्रसक्ति
तेँ समष्टि - व्यष्टि योजना प्रमाणि लेब
दान ई निदान समाधान मानि लेब
ई न वर्ग - मूल शूल - हस्त क्रान्ति रक्त
ई न द्वन्द्व - मूल भौतिकी क अन्ध भक्त
ई न सर्व-हरी सर्व-हरा दल विभक्त
श्रन्ति गर्त, क्रान्ति पर्त दूहू मेटा देब
महाभारतेक शान्ति - पर्व जुटा लेब।।
क्रान्ति शान्ति हेतु, भ्रान्ति ज्ञान हेतुएँ
व्याधि ओ उपाधि सह्य स्वास्थ्य हेतुएँ
जेठ तपय तते हेठ मेघ वृष्टिएँ
प्रलय एतय विदित, नवल सृष्टि हेतुएँ
नवा पुरातनी, सनातनी पुनर्नवा
नवीनता पुरातनी सनातनी नवा
दिवा तपी, निशा शशी, सुखाय वा दुखाय
किन्तु ई उषा - प्रदोष अन्विता नवा
भीख ई न थीक मात्र दीनताक हेतु
लीख ई न थीक मात्र नीति सिन्धु सेतु
सीख ई न थीक मात्र प्रीति-कीर्ति केतु
सहज मनुजताक कर्म मर्म जानि लेब
महज दनुजताक भेद वर्ग मानि लेब।।