भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अमृत (गुड़ीच) / अन्योक्तिका / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:23, 17 मई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेन्द्र झा ‘सुमन’ |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

डाँटे - पाते टा, परक सहयोगहिँ चतरैछ
दुखित क दुख हरइत गुड़िच अमृता जग कहबैछ।।29।।

चम्पा - कनक बरनि धनि चंपिका उद्यान क शृंगार
कारी खटखट ष्ज्ञट्पद क उचित कयल परिहार।।40।।

वेल-वेली - बेल कतय, बेली कतय? वन उद्यान सूदूर
फूल एक, फल दय अपर, शिव सङ संगति पूर।।41।।

आक-धथूर - महादेव औढर, चढ़ओ, हुनिसिर आक-धथूर
किन्तु न किन्नहु छुबि सकत विधि हरि चरण क धूर।।42।।

तमाकू - ने फूल - फूल, ने स्वाद-रस, केबल तेजी प्राप्त
सुँघय, चुसय, फाँकय, पिबय, जगत तमाकू व्याप्त।।43।।