पशु-पक्षी / अन्योक्तिका / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
सिंह - ने मन्त्री, ने सैन्य बल, न ेगज, ने रथ साज
अपन पराक्रमसँ बनल सिंह स्वयं मृगराज।।53।।
चीता-बिलाड़ - ओहिना चितकाबर चफर गुड़रनिहार बिलाड़
चीता-समता कय सकत? यदि च मतंग शिकार।।54।।
गज तुरग - बड़द रुद्र, हरि गरुड, विधि हंस, मयूर कुमार
करथु सबारी, किन्तु गज-तुरग इन्द्र दरबार।।55।।
साँढ-बड़द - चरय उछिन, बिहरय बिपिन साँढ़क बढ़ल महत्त्व
खेत खटय, गाड़ी बहय बड़द, न जेँ पुरुषत्व।।56।।
कूकुर - मित-भोजी, मृगया-कुशल, अनलस भरि-भरि राति
जागि बचाबय चोरसँ, कूकुर पोसय स्वाति।।57।।
गोजाति - दूध दही घी देथि जेँ उपजाबथि वन-बाघ
बहथि शकट, तेँ मान्यता गो जाति क निर्बाध।।58।।
गाय-महिसि - धेनु छीन बिसुकाहि बरु जगमे पूज्य बनैछ
दुधगरि धोधगरि महिसि पुनि यम-वाहन कहबैछ।।59।।
गाय-बकड़ी - पुच्छ शृंग खुर सभ सदृश, बढ़ि बहुतौ सन्तान
तदपि अजा डेङबय अदय, पूजय गाय पुरान।।60।।
हरिण - हरिण! धन्य!! तृण चरि विचरि वन, तरु तर निशि बास
देखह न धनिक क मुख विमुख सहह न विरह प्रवास।।61।।
तबधल जेठ क दिन पहर तुलित जगत भ्रम जाल
दुख केँ सुख, लुह केँ सलिल बुझि मरइछ मृग ज्वाल।।62।।
घोड़ा जाति - गुड़-लद्दी पशु जौँ कहय, हमरहु घोड़े जाति
थिक तुरंग केँ उचित जे अपनहि बनय अजाति।।63।।