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प्रथम दर्शन / श्रृंगारहार / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
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सात्त्विक भाव - कनडेरियहिँ ताकल कने दृग - विष श्याम भुजंग
कंप स्वेद जड श्यामती विष ज्वर व्यापल अंग।।1।।
गणित-वैचित्र्य - दुइ - दुइ चारि प्रसिद्ध अछि गणित शास्त्र सिद्धान्त
युगल नयन युग योगसँ एकी भाव नितान्त।।2।।
वैषम्य - नलिन भ्रमहि हेरल नयन चुभ चुभ उर गड़ि गेल!
जलद जाल बुझि कच विकच लखितहिँ मन तपि गेल!!3।।