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द्वितीया / अंकावली / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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भूमि-बीज विनु नहि तृन तरु बिनु जनक-जननि नहि जन्य
मान्य न द्वैत विशेषण यदि अद्वैत विशेष्य अमन्य।।1।।
रूप - अरूप, सगुण - निर्गुण वा निराकार - साकार
बिनु भावेँ अभाव बुझवाकेर अछि की कोनो प्रकार?।।2।।
जड़ बिनु जंगम गमन करत कत? तन बिनु करत कि प्रान?
परम पुरुष बिनु परा प्रकृति अव्यक्त व्यक्त अनुमान।।3।।
आदि ककर यदि अन्त न? न वा अनादि अनन्तहु नाम
रमन रमा बिनु, भानु विभा बिनु, शिव न शिवा बिनु वाम।।4।।
आद्या कतय द्वितीया बिनु इति बिनु अथ कतय बनैछ?
जनम-मरण छायातप, अग्नीषोम द्वन्द्व सङ ह्वैछ।।5।।
प्रेम तत्त्व की? प्रेमिक प्रेमी यदि न भिन्न तनु हन्त!
भेद क भेद अभेद भावनहिँ दुरित हरित पुनि अन्त।।6।।
जयतु द्वैत वृषभानु - नन्दिनी नन्दित नन्द - किशोर
द्वैताद्वैत भक्त - भगवंत जयतु नित चन्द्र - चकोर।।7।।
दर्शन विषय एक, दृग युगल श्रवण एकहु, श्रुति युग्म
तन दुइ, मन पुनि एक न संगत प्रेमक प्रतिभा तिग्म।।8।।
भेद अभेदहु सु-चित उचित, सूचित कत निगम निकाय
महिअ द्वितीया तारिणि चरणे शरणे ऐक्य उपाय।।9।।