भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ससुरा से नइहर जाइबि / मोती बी.ए.
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:42, 20 मई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोती बी.ए. |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ससुरा से नइहर जाइबि
कवन मुँह देखाइबि हो-
स्वामी डारि दीत नेह के नजरिया
त थेघ लागि जाइत हो।
जिउ धुनि धुनि काम करीलें
हुकुम बजाई ले हो-
स्वामी, लात-गारी मीलेला ईनाम
ईहे त सुख पाइले हो।
स्वामी डारि दीत...
हमरा बा जेकर आधार
ओही के जब विचार ई हो
स्वामी, केकरी भरोसे दिन काटबि
जिनगी बिताइबि हो।
स्वामी डारि दीत...
जब न अलम कवनो पाईबि
हम कहाँ जाइबि हो
स्वामी, लागल करेजवा में
अगिया के कइसे बुताइबि हो।
स्वामी डारि दीत...
ससुरा से नइहर जाइबि
कवन मुँह देखाइबि हो-
स्वामी डारि दीत नेह के नजरिया
त थेघ लागि जाइत हो।