मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
कहँवाँ<ref>किस जगह</ref> ही कृष्ण जी के जनम<ref>मगही के पश्चिम भाग में ‘जनम’ का प्रयोग मिलता है और पूर्वी भाग में ‘जलम’ का।</ref> भयेल,<ref>वंश-वृद्धिकारक</ref> भयेल,<ref>हुआ</ref> कहँवाँ ही बजे हे बधावा, जसोदा जी के बालक।
मथुरा में कृष्ण के जनम भयेल, गोकुला ही बाजे हे बधावा॥1॥
काहे के छूरी कृष्ण नार कटायब, काहे खपर असनान।
सोने के छूरी कृष्ण नार कटायब, रूपे खपर असनान॥2॥
नहाय धोआय कृष्ण पलंग सोवे, काली नागिनी सिर ठारा<ref>ठाढ़, खड़ा</ref>।
का तुम नागिन ठारा भई, हम है त्रिभुवन नाथ॥3॥
शब्दार्थ
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