भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नवल नवाब खानख़ाना जू तिहारी त्रास / गँग
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:31, 12 जून 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गँग |अनुवादक= |संग्रह= }} <poem> नवल नवाब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
नवल नवाब खानख़ाना जू तिहारी त्रास,
भागे देश पति धुनि सुनत निसान की।
गंग कहै तिनहूं की रानी रजधानी छाँड़ि,
फिरै बिललानी सुधि भूली खान-पान की।
तेऊ मिली करिन हरिन मृग बानरानी,
तिनहूं की भली भई रच्छा तहाँ प्रान की।
सची जानी करिन, भवानी जानी केहरनि,
मृगन कलानिधि, कपिन जानी जानकी॥