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दुःख में पद / मुकुटधर पांडेय
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नाथ अब हर लो मेरी पीर।
तन-पिंजर में बन्द रट रहा, तुम्हें प्राण ज्यों कीर।
दुःख दावानल मेंपड़कर है, जलता आज शरीर
उस पर मनस्ताप नित मुझको मार रहा है तीर
दीन मलीन सरुज जन के प्रभु! नयनों का यह नीर
पोंछेगा हाथों से तुम बिन कौन भला रघुबीर?