भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किसलय के प्रति / मुकुटधर पांडेय

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:14, 17 जून 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकुटधर पांडेय |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मग्न आज तुम किस लय में हो
हे किसलय कल-कान्ति नवीन
किस पथ से तुम पहुँच हुए कब
तरुवर शाखा पर आसीन
हे अस्पृष्ट अनिन्द्य अनामय
हे मृदुतर हे चिक्कण-गात
प्रभा पुंज हे किरण-किरीटी
किस निशि के तुम पुण्य प्रभात
शोभा श्री सौन्दर्य समन्वित
सरल सद्य सुषमा साकार
किस रूपसि के श्रवण पूर तुम
किस वनमाली के शृंगार
किस खनि के तुम पद्मराग मणि
किस भावुक उर के अनुराग
किस परिमल-मय पारिजात के
तुम हो पुंजीभूत पराग
अरुण-पीत छवि देख तुम्हारी
दिव्य तप्त कंचन सी कांति
क्या अचरज विरहिनि वैदेही
को हो गई अनल की भ्रान्ति
किस वन-बाला के बिम्बाधर
तुम हे शिशु पल्लव सुकुमार
किसे बुलाते हो इंगित कर
तरु-शाखा पर बारम्बार