भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिन्दगी के हाशिये में / प्रकाश मनु

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:10, 18 जून 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रकाश मनु |अनुवादक= |संग्रह=छूटत...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज




सिंको सिंको
और और सिंको
धूप में

(मक्खियों की भिनभिनाहट चिपका लो
गाल से,
मरे हुए भविष्य-शिशु की यादें सीने पर!)

सिंको सिंको
और और सिंको
भूख की आग में-

भूख से भूख! नींद से नींद तक की सैर
यही है एक रास्ता
जो चिन्ताओं के बीच से गुजरता है/सीधा।
सिंको सिंको
उम्र भर। अभाव की चौखट पर
जटिल शीर्षासन-रत,
हाथों में कुछ पीले पत्ते दिये गये हैं तुम्हें
इन्हें खत्म करने से पहले और बाद
गिनो बार-बार

बिना चकराये गिन सको तो मौत से
छीन ला सकते हो
दो चार बरस और सुरक्षित
मुर्ग
दड़बे में-
और थोड़ी-सी चेतना मुंह से पेट तक की।

सिंको सिंको
एक छोटे वृत्त की गिनती के
दुर्वह ताप। सिरदर्द में-
(नीले तमाचों को बार-बार छुआ कर
झुका/प्रसन्न/माथा)
और घिसटते रहो कुछ और
जिन्दगी के हाशिये में...!