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उगते अंकुर की तरह जियो / सुशीला टाकभौरे

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स्वयं को पहचानो
चक्की में पिसते अन्न की तरह नहीं
उगते अंकुर की तरह जियो
धरती और आकाश सबका है
हवा प्रकाश किसके वश का है
फिर इन सब पर भी
क्यों नहीं अपना हक़ जताओ
सुविधाओं से समझौता करके
कभी न सर झुकाओ
अपना ही हक़ माँगो
नयी पहचान बनाओ
धरती पर पग रखने से पहले
अपनी धरती बनाओ।