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हमने तो जीना चाहा था मां / प्रकाश मनु

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हमने तो जीना चाहा था मां।

हमने तो नहीं चाहा था
रास्ता चलते जो भी मिले
लात फटकारता चला जाए
बुलडोजरों के आगे पटका जाए
हमें मलबे की तरह
कि श्रीमानों के पैरों के बीच हो हमारी जगह

हमने तो नहीं चाहा था
कि हमेशा किसी न किसी के आदेश पर
चलें हमारे हाथ-पांव
बंधुआ हो मन, गुलाम इच्छाएं
हमने तो नहीं चाहा था द्वार पर
मरे हुए चिमगादड़ सपनों की टंग जाए झालर
जैसे गंधाते हुए जूतों की कतार

तो यह क्या हुआ-क्या हुआ मां कि
आज तो नरक और नरक और नरक के बीच
कोई रास्ता ही नहीं हमारी जिंदगी का
हम तो आज कहीं नहीं, कुछ भी नहीं
कभी-कभी हमें खुद के जिंदा होने पर भी
होने लगता है शक
एक-दूसरे की मौत तक का नहीं हमें अफसोस
एक-दूसरे को मारने में कहीं न कहीं
हमारा छिपा हुआ हाथ
हमारे दिलों में पत्थर ही पत्थर उछलते
टकराते एक-दूसरे के सिर और छातियों से।

तुमने तो अपनी करूणा से
हमें रचा था
अपने अदम्य प्रेम से-
तुमने तो हमें प्यार से
दुनिया जीतने लायक बनाया था मां!

हमीं नहीं कद्र कर सके तुम्हारी
हमीं नहीं चल सके तुम्हारी राह मां
आज अगर हम टूट-टूट पिस-पिसकर
बने हैं पहाड़ से
चूना-मिट्टी-बजरी-पत्थर और राख....
हुए बर्बाद
तो इसलिए कि अपने आप से
नहीं कर सके संवाद

नहीं दे सके अपने
अनुŸारित प्रश्नों के जवाब
नहीं हो सके
आत्म-परीक्षा में पास...

घास.... !
घुटनों तक उग आई है घास
और हम खड़े है स्टेचू से
चिड़ियां हम पर बीट कर जाती है मजे से
और हम है प्रतीक्षा में
कोई आए
हमें चलना सिखाए

आज तुम्हारा नाम तक लेने में
हमें शर्म आती है मां

इसलिए कि नहीं कि आज तुम्हारे बेटे
ज्योतिष्क नेत्र
आलोकित भाल,
जैसे तुम हमें छोड़ गई थी मां।

हमारे दुख हमीं को नहीं सालते मां
हमीं को नहीं काटता हमारा अवसाद
तो किसे नजर आएगा
सूखे सिलबिल चेहरों का हुजूम... ?

हमें हमारे हाल पर छोड़ दो मां
फिलहाल...
हमें अपने अंधेरों में दरकने से कौन बचा सकता है ?
शायद इसी तरह लड़ते-लड़ते नरक के बीच
नजर आ जाए कोई रास्ता?