अभी मैं नहीं मरूंगा / प्रकाश मनु
अभी मैं नही मरूंगा
अभी करने है बहुत काम
अभी लिखनी है कविताएं
और उनमें उगाने है हरे-हरे खुशमिजाज पेड़
झील दरिया और गुनगुनाता हुआ जंगल...
दलदल अभी बहुत है-इसे साफ करना है
झाड़ना-पोंछना है धरती को, जोतने है खेत
चिड़ियों के चुग्गों का इंतजाम करना है
अभी करने हैं बहुत काम
कुछ और नहीं तो मचाऊंगा कुहराम
अभी बिजलियों का घेरा तोड़कर
चूमना है आसमान
अभी तो मेरे साने है कुल जहान
अभी तो बांहे फंसा उलटने हैं
कई पहाड़
करनी है क्रांतियां
अभी तो आसमान-धरती का करना है गठबंधन
और तमाम टीले पीठ पर उठाकर ले जाने हैं
समंदर पार
अभी पाटनी है खाइयां
अभी तो हलचलों जैसी हलचल भरनी है
वक्त की छाती में
अभी हरापन लाना है मौसम की पाती में
अभी मिट्टी से पैदा करने हैं तूफान...
और समतल करने है। रेत के बड़े-बड़े ढूह
अभी तो काटने है झाड़-झंखाड़ स्वाहा
करना है कबाड़...
अभी शब्दों में लगानी है आग
गुजरे जमाने के पत्थरों, खंडहरों, किलों में
जगाना है राग
और रचनी है एक नई, बिलकुल नई चमचमाती दुनिया
अभी तो बहुत छोटी है मेरी मुनिया
अभी उसे ब़ड़ करना है और
और साथ-साथ लड़ना है-
बड़ी कठिन चढाइयां चढ़ना है
अभी तक तो बस यूं ही रही भागम-भाग
अभी फूलों से रंगों से खेला कहां फाग !
अभी तो हाथ तापते बातें करनी है दोस्तों से
दुनिया जहान की
अभी तो दुखों को सुनहरा करना है
अभी तो मुझे जीना है
अभी मैं नहीं मरूंगा
अभी मुझे करने हैं बहुत काम।