भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सहरा भी गुलज़ार भी तो हैं / देवी नांगरानी
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:23, 20 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवी नांगरानी }} सहरा भी गुलज़ार भी तो हैं<br> साथ गुलों ...)
सहरा भी गुलज़ार भी तो हैं
साथ गुलों के ख़ार भी तो हैं.
मन को मोहे मस्ती, रौनक
संग उनके आज़ार भी तो हैं.
क्यों लगती है दुनिया दुशमन
दोस्त कई दिलदार भी तो हैं.
कश्ती साहिल पर आ ठहरी
तूफ़ाँ के आसार भी तो हैं.
ख़ुशियों की न कमी है देवी
चिंता के अंबार भी तो हैं.