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मेरी बॉल / दिविक रमेश
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अरे क्या सचमुच गुम हो गई
मेरी प्यारी-प्यारी बॉल?
कहां न जाने रखकर मैं तो
भूल गई हूं अपनी बॉल!
यहां भी देखा वहां भी देखा
मिली नहीं पर मेरी बॉल!
उछल उछल कर मुझे हंसाती
कितनी अच्छी थी न बॉल!
पकड़ के लाता दॊड़ के पप्पी
दूर फेंकती थी जब बॉल।
कहां न जाने रखकर मैं तो
भूल गई हूं अपनी बॉल।
मां बोली तू बड़ी भुलक्कड़
आ ले खाले ये बादाम।
खाकर अपने इस दिमाग को
देना फिर थोड़ा आराम।
तभी याद आई मुझको तो
दीदी ने तो ली थी बॉल!
झट बोली जाकर दीदी से
दे दो दीदी मेरी बॉल!