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हवा हिलाती / दिविक रमेश
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हवा हिलाती
हिलते फूल
फूल पै बैठी तितली हिलती
हिलते हिलते पंख हिलाती
जी करता उनको मैं छू लूं
हाथ बढ़ाने पर उड़ जाती
मानो पीछे मुझे बुलाती।
हवा हिलाती
हिलती लहरें
नाव पै बॆठा माझी हिलता
हिल हिल कर पतवार हिलाता
जी करता उस तक मैं जाऊं
पर वह तो मस्ती में गाता
कितनी दूर नाव ले जाता।
हवा हिलाती
मन भी हिलता
पलक पै बॆठा सपना हिलता
हिल हिल कितने रंग दिखाता
जी करता सपना सच कर लूं
पर वह तो हंसता हंसता सा
चुपके से जाकर छिप जाता।