भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये कैसी पहचान बनाए बैठे हैं / वीनस केसरी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:59, 11 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीनस केसरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGha...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ये कैसी पहचान बनाए बैठे हैं
गूंगे को सुल्तान बनाए बैठे हैं
मैडम बोलीं आज बनाएँगे सब घर
बच्चे हिन्दुस्तान बनाए बैठे हैं
आईनों पर क्या गुजरी, क्यों सब के सब,
पत्थर को भगवान बनाए बैठे हैं
धूप का चर्चा फिर संसद में गूंजा है
हम सब रौशनदान बनाए बैठे हैं
जंग न होगी तो होगा नुक्सान बहुत
हम कितना सामान बनाए बैठे हैं
वो चाहें तो कर लें खुद को और कठिन
हम खुद को आसान बनाए बैठे हैं
पल में तोला पल में माशा हैं कुछ लोग
महफ़िल को हैरान बनाए बैठे हैं
आप को सोचें दिल को फिर गुलज़ार करें
क्यों खुद को वीरान बनाए बैठे हैं