भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुहब्बत की हीर / इमरोज़ / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:59, 11 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इमरोज़ |अनुवादक=हरकीरत हकीर |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मुहब्बत से कोई रांझा हो सकता है
कला से कोई शायर
पर कला से कोई रांझा नहीं हो सकता
शायर की नज्में
शायर की शायरी क्यों नहीं बनती
शायर की ज़िन्दगी
ज़िन्दगी की खूबसूरती
शायर की कला ही है शायरी लिखने की
सोचता रहता हूँ कि किसी तरह
शायरी की कला भी
जीने की कला खूबसूरत जीने की कला हो जाये
सोच सच भी तो हो जाती है
इक बार अपनी इस सोच को
सच होते मैंने भी देखा है और सब ने भी
इक खूबसूरत शायरा को जब मुहब्बत हुई
उस की शायरी और खूबसूरत हो गई
और उसकी ज़िन्दगी उसकी शायरी से भी खूबसूरत
मुहब्बत के साथ कोई हीर भी हो सकती है
और शायरा भी...