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लाओ मेरे धन्यवाद वापस दो / लोकमित्र गौतम

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मुझे पता है मेरा ये कहना
'लाओ मेरे तमाम धन्यवाद वापस दो '
तुम्हे अटपटा लग रहा होगा
तुम इसे मजाक मान रही होगी
मगर मैं
मजाक नहीं कर रहा
मैं गंभीर हूँ
ओफ्फो...! फिर बहस
मैं नहीं चाहता कि हम अब भी यहीं अड़े रहें
कि गलती किसकी है
यकीनन यह सवाल पेंचीदा है
मगर
बीजगणित के पास इसका रास्ता है
जवाब पाने की सुविधा के लिए मान लेता हूँ
मै ही कुसूरवार हूँ
जो तुम्हें
उस रास्ते को बताने के लिए धन्यवाद दिया
जिसके चप्पे चप्पे से मै वाकिफ था
मगर मै भी क्या करता
तुमसे बात करने के लिए मेरे पास
रास्ता पूछने के सिवाय कोई और बहाना भी तो नहीं था
मुझे अफ़सोस है
मैंने तुम्हे यह याद दिलाने के लिए धन्यवाद दिया था
कि आज सोमवार है
और सरकारी नियमों के मुताबिक
सोमवार को तमाम संग्रहालय बंद रहते हैं
मुझे यह स्वीकारते हुए अब झेंप हो रही है
कि मैंने ये जानकारी
आश्चर्यचकित होते हुए सुनी थी
जबकि सच ये है कि संग्रहालयों में
मेरी कोई दिलचस्पी ही नहीं है
...और याददाश्त मेरी कमजोर नहीं है
धन्यवाद अदायगी तो महज उस झूठ का खामियाजा था
जो झूठ रास्ता पूछकर मैं बोल चुका था
एक धन्यवाद वह...
खैर छोड़ो! यह सूची बहुत लम्बी है
फिर भी मैं चाहता हूँ
जब तुम मेरे दिए धन्यवाद वापस करो
तो अनमनी और उदास न दिखो
हालाँकि यह तुम पर है
मेरी बात मानो या न मानो
मैंने तो बस इच्छा जताई है
वैसे मैंने यह बताने कि तो नहीं सोचा था
कि मैंने यह अटपटा निर्णय क्यों किया?
दिए हुए धन्यवाद
इतनी बेरुखी से वापस क्यों मांग रहा हूँ?
पर अब तुम आग्रह ही कर रही हो तो
बताता हूँ
दरसल आजतक मैंने कुछ देकर
कुछ पाने का रोमांच नहीं महसूस किया
मुझे नहीं पता
किसी को दिल दो तो बदले में क्या मिलता है?
क्योंकि मैंने जब दिया
तो सोंचा बदले में मुझे धडकने मिलेंगी
पर ऐसा नहीं हुआ
धडकने तो दूर
अदना सा एहसान भी नहीं मिला
कई बार लगा कहीं गफलत तो नहीं हुई
जिसे दिल दिया है
उसे पता भी है कि वह जिस खिलोने से खेल रही है
वह मेरा दिल है?
मगर जब उसने मेरे पास आकर
शिकायत के लहजे में कहा
तुम्हारे शरीर में गर्म खून नहीं है क्या?
यह कैसा लिजलिजा सा है
न फिसलता है
न उछलता है...
सुनकर संतोष हुआ
चलो उसे पता तो है
मै दाता हूँ
मैनें हर बार चुनावों में
किसी न किसी को अपना भरोसा दिया
और बदले में थोड़ी सी उम्मीदें चाही
अपने हिस्से की धूप और बारिश चाही
मगर हरबार निराश हुआ
अपनीं नींदों को मैंने
बेशुमार सपने दिए
सोंचा ये मेरी सुबहों को मालामाल कर देंगी
पर अफसोस ऐसा कभी नहीं हुआ
 फिर तुम्हीं बताओ
मै आखिर कब तक
यह नेकी करके दरिया में डालता रहता
बहुत हो गया
जब किसी ने खुद कुछ पलटकर देने का मुझसे लिहाज़ नहीं बरता
तो मैं अपने धन्यवाद वापस मांगने में
संकोच क्यों बरतूं?
किसी न किसी दिन तो ये होना ही था
वैसे भी मैंने कुछ अनुभवी किसानो से सुना है
अगले साल सूखा पड़ने वाला है
सरकारी मौसम विज्ञानी कुछ भी कहें
मुझे इन अनुभवी किसानों पर ज्यादा भरोसा है
क्योंकि वो आज भी
पूरब से आने वाली हवाओं से बोलते बतियाते हैं
पश्चिम को जाने वाली धूप से सुख दुःख साझा करते हैं
परछाइयों के इशारे और रात कि उम्र पढने में
आज भी उनका कोई सानी नहीं है
उनके कदम दूरी नहीं
धरती का सब्र नापते हैं
इन अनुभवी किसानों का कहना है
धरती का सब्र जवाब दे रहा है
फिर बताओ मै और कितने दिन इंतजार करता
लाओ मेरे धन्यवाद वापस दो...