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मुझसे ही तुम हो / लोकमित्र गौतम
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यकीन मानो मुझसे ही तुम हो
मैं तुम्हारी अनकही
उपकथाओं का शंकुल हूँ
मैं ही तुम्हे
उपन्यास बनाता हूँ
मानो या न मानो
मेरी अनुपस्थि में
तुम महज घटना हो
परिघटना नहीं
पता नहीं तुमने
महसूस किया या नहीं
मै बुना हुआ नहीं
व्याप्त सन्नाटा हूँ
मेरी बदौलत ही तुम्हारी
मुखरता
ध्वनित होती है
तुम अपने दोहरे इन्वर्टेडकामा में
होने की कुलीनता न दिखाओ
मै विसर्ग बिन्दुओं के भरोसे ही
नश्वरता से अमरता तक
पसरा आख्यान हूँ...