भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुनाह / अरविन्द कुमार खेड़े

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:08, 14 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरविन्द कुमार खेड़े |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धीरे-धीरे
वक्त बीत गया है
वक्त ने मेरी उजली देह पर
बनाएं हैं जख्मों के निशान
वक्त ने मेरे जख्मों को
ढँक दिया है सफ़ेद चादर से
वक्त ने अपने गुनाहों पर
डाला है पर्दा।