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राजा बोया गरिया छोहरवा रे / मगही
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मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
राजा बोया<ref>वचन दिया, बीज गाड़ा</ref> गरिया<ref>गरी, नारियल</ref> छोहरवा रे।
बदमवाँ मोरा मन भावे रे॥
अँगना में लेमु<ref>नींबू</ref> बोया, दुअरे<ref>द्वार पर</ref> अनार बोया जी, राजा बोया गरिया॥1॥
अँगने में लेमु फला, दुअरे अनार फला जी।
राजा फला है छोहरवा, बदमवाँ, बदमवाँ मोरा मन भावे जी॥2॥
अँगने का लेमु पका,<ref>पक गया</ref> दुअरे अनार पक्का।
पका है गरिया, छोहरवा, बदमवाँ, बदमवाँ मोरा मन भावे जी॥3॥
अँगने का लेमुआ तोड़ा, दुअरे अनार तोड़ा।
राजा तोड़ा है गरिया, छोहरवा, बदमवाँ, बदमवाँ मोरा मन भावे जी॥4॥
गैलूँ<ref>गई</ref> मैं बिंदाबने,<ref>वृन्दावन नामक जंगल</ref> हुँएँ हैं नंदलाल।
होरिलवा मोरा मन भावे रे॥5॥
शब्दार्थ
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